सत्यामेव त्रिलोकीसरिति हरशिरथुम्बिनी विच्छटाय
सद्वृत्तिं कल्पयन्त्यां वटविटपभवैर्वल्कलैः सत्फलैश्च ।
कोयं विद्वान्विपत्तिज्वरजानतरुजातीव दुःस्वासिकानां
वत्रं वीक्षेत दुःस्ये यदि हि न विभृयात्स्त्रे कुटुम्बेनुकम्पाम् ॥९ ५ ॥
XCV . ( a ) ° विच्छ ० ; ° वच्छ ° C. ( b ) सहत्तिम् ; सवृत्तम् M. त्यांवटावैट
प : स्यात्ततट ( ° त्यान्तद ? ) विठवि K. T. P. M. ( c ) ° स्वासि ° ; ° खास्त्रि , M.
( ३ ) ०३० ; ० क्ष्ये ° ० C. स्कु ० कु ; ° ° च्चेकु कु ° M. म्_ omitted in M.
St. XCV . - त्रिलोकोसारत् = the Ganges . Comp . the name त्रिस्रोतस्- in
Heaven , Earth and the nether world . हरशिरश्चुम्बिनी नीविच्छटा यस्याः
सा . नीविच्छटा is rendered by काञ्चीप्रदेश : in the commentary in M.
वृत्ति as in St. 59 and elsewhere . कल्पयन्त्याम् comp . St. 10 ; equi -
valent to ‘ furnishing ' here . प्रेरयन्त्थाम_ says the commentary . But see
Raghu V. , 9 and Viracharita p . 32 ( Calc . Ed . 1857. ) दु : खासिका
and दःखास्विका are rendered by नारी in the respective commentaries .
I cannot say what they mean . Comp . St. 8. - Sragdhará .
सत्यामेव त्रिलोकीसरिति हरशिरश्रुम्बिनी विच्छटायां
सद्वृत्तं कल्पयन्त्यां वटविटपिभवैर्वल्कलैः सत्फलैश् च ।
कोऽयं विद्वान् विपत्तिज्वरजनितरुजातीव दुःखासिकानां
वक्रं वीक्षेत दुःस्थे यदि हि न बिभृयात् स्खे कुटुम्बेऽनुकम्पाम् ॥ ३३ ९ ॥
339 { V } Found in D E F ‡ V103 ( 102 ) [ Also BORI328 V105 ( 103 ) ;
Jodhpur 3 V100 ( 99 ) ; NS3 V120 ( extra ) . ] — @ ) F4 -वीचि ( for -नीवि- ) . ' ) D
सद्वृत्तिः ; Eot सद्वृत्तां ; Es सवृत्तं ; Eo Ec सद्वृत्ते ; F | सद्वृत्तिं . D E Fs तटविटप- Eo तटविटपिं :
E० वटविटप – ) D F 4 को विद्वान्वित्तपित्तज्वरजनितरुजा तीव्रदुःखाधिकानां ( Fs ' खासिका ) .
- * ) Eot . * वीक्ष्येत दुःस्थो E2 वीक्ष्ये तदुत्थो . E4F½ यदिह . D चिंताम् ( for -कम्पाम् ) .