सखे धन्याः केचित्तुटितभत्रबन्धव्यतिकरा
वनान्ते चित्तान्तर्विषमविषयाशीविषगताः ।
शरच्चन्द्रज्योत्स्नाधवलगगनाभोगसुभगां
नयन्ते ये रात्रि सुकृतचयचित्तैकशरणाः ॥ ५७ ॥
LVII . ( a ) सखे ; अहो . B. ( 6 ) चित्तान्ताव ; चिन्वन्तो वि ० . B. ● शीविषगताः ;
शीविगलिता : noted in M. Commentary ° ता :; तिम् . B. ( c ) ● गाम ; ° गा .
+ B. ( d ) चै ० ; ° न्तै ० B.
St. LVII.- . See St. 52. : & c . is not clear . It
may be " into whose minds worldly objects which are like a
dangerous snake have entered , " but there is a difficulty of both
grammar and sense in this . The reading of B. ( taking अचि -
) would mean " not looking to ( i . e . not minding ) the course
of worldly objects which are like dangerous snakes . " -
expanse , Uttararàmacharita p . 42. 4. The Âtmanepada is only
for the metre . & c . comp . St. 49. - S'ikharini .
सखे धन्याः केचित् त्रुटितभवबन्धव्यतिकरा
वनान्ते चिन्वन्तो विषमविषयाशीविषगतीः ।
शरच्चन्द्रज्योत्स्ना धवलगगनाभोगसुभगां
नयन्ते ये रात्रिं सुकृतचयचित्तैकशरणाः || ३३७ ॥
337 { V } Found in A D E , F1 V57 ; F + ( V63m 62 ) { AlspyS 238743 ;
BORI 328 V64 ( 63 ) ; Jodhpur 3 V63 ; NS1 - V66 , NS2 VD3 NSKVohextra ) . ]
“ ) Many unc „ llated Mss . अहो ( for सखे ) . " ) E चिन्तांतर ( Sop बिन्तो ) . Fi
विषमविषपानी ; F + विषयविषमाशी . Aoc EIF1 विषगत :: तिः 11 विषगतिं .
Ec.v. विषमविषयाशीर्विगलिताः ¬ ) F ‡ ( np.v. as_in text ) शरज्योत्स्ना चन्द्रा . - ) .
AB Est . st नयंत्येते . A हरिचरणचित्तैक ; Ait ( orig . ) हरचरणचिन्तैक : F1 सुकृतमयभित्रैक ;
Fs सुकृतचरणैक ; Fsm . v . हरचरणमो * * ( for सुकृतचयश्चित्तैक- ) .