Tawney

The world conspires to honour those   Who rise by gentle arts, Who show their own heroic strain   By praising others' parts, Who patiently reproaches bear,   Nor scorned revile again, Who still to selfish ends prefer   The good of other men.

Telang

verse

Text (not proofread)

नम्रत्वेनोन्नमन्तः परगुणकयनैः स्वान्गुणान्ख्यापयन्तः

स्वार्यान्संपादयन्ती विततपयुतरारम्भयत्नाः परार्थे ।

सान्त्यैवाक्षेप रूक्षाक्षरमुखरमुखान्दुर्मुखान्दूषयन्तः

सन्तः साश्चर्यचर्या जगति बहुमताः कस्प नाभ्यर्चनीयाः ॥३ ९ ॥

footnote

Text (not proofread)

LXIX . ( a ) ° न्न ° ; °° ..T . कथनैः ; नुतिभि : Be . K , ख्याप ; छाद ० .

S. X. व्याव ° . W. ( 6 ) ● र्थान् ; ० र्थम् . D. P.R. ' तन ; " नत . Be Bo .

( orig . Bo.n. ) पृथुतरा ; प्रियतरा ° W. T. पृथुमहा ० C. ° ला :; लैः .

Be . Bo . ° न्तः . K. Be.n. येँ .; ० येँ : Bo.n. ( e ) ; स्थे . K. Be

1. " वाक्षेप ; ० वोपेक्ष . P. R. D. ( where for पे ) . ° मुखा ° ; जना ०. C. x .

W. S. N. दूष ° ; दुःख " . D. Bo.n. N. दुर्मुखान्दूषयन्तः ; दूषयन्तः समन्तात .

G. ( d ) ● न्तःसा ; ° न्तोप्या ०. G. च ° ; व ० . c . x . S. L. W. & noted

in R. ० र्च ; ०६०. Be . Bo . ( orig . Bo.n. ) .

endnote

Text (not proofread)

St. LXIX.- :. The commentator says स्वान्स्वकीया atqomentat गुणान्परेषा

गुणानां कथनैः सह ख्यापयन्तः कथयन्तः स्वान्गुणान्स्वयं न वदन्ति परेषां गुणानुवादा :

क्रियन्ते तेरेय प्रसङ्गेन एतेषां गुणानुवर्णनं क्रियते इति कृत्वा स्वार्थान् & c . But this is

scarcely correct , and it does not indicate any quality to be ad

mired . The meaning is showing their own good qualities

( namely , good nature , freedom from envy & c . ) by describing the

good qualities of others . " Hdeed , act . Raghu . I. , 15 .

= of admirable conduct . Comp . Rajataranginî p . 4 ( Calc . Ed . ) ra

artaû wydawał q : -0 . has for , and the commenta

tor says er a : . But this is not satisfactory , and the

other reading is much better . - Sragdhará .

Gopinath1914

Text (not proofread)

Gopinath1896

Text (not proofread)

Kosambi

verse

Text (not proofread)

नम्रत्वेनोन्नमन्तः परगुणकथनैः खान् गुणान् ख्यापयन्तः

स्वार्थान् संपादयन्तो विततपृथुतरारम्भयत्नाः परार्थे ।

क्षान्त्यैवाक्षेपरूक्षाक्षर मुखरमुखान् दुर्मुखान् दूषयन्तः

सन्तः साश्चर्यचर्या जगति बहुमताः कस्य नाभ्यर्चनीयाः ॥३६ ॥

footnote

Text (not proofread)

.36 Om . in NS2 . “ ) B F1.2 . 4 ( t.v , as in text ) J Mi 5 नुतिभिः ( for कथनैः ) .

Y1B स्वागुणान् F3 F3 Wst Wst व्यापर्यंत व्यापयंत :; ; W2 W2.30 . 30. . + + स्थाप स्थाप ' ; ; Y0 बाच O ( for ख्याप ) . - 0 ) B

कुर्वतः स्वीयमर्थ ; F1 . 2. 4 ( t.v. as in text ) G1 Mg ( 2 मु ) ष्णतः स्वीयमर्थ ; H It स्वार्थ

संपादयंतो . BY7.8 G1 M सतत - ; F2 विवृत ; Y3 वितथ ; + विविध ( for वितत - ) . As

X X1 - बहुतरा ; BY8 G1 M1 - 3 -कृतमहा ; Est Fst.v. पृथुफला ; W2 . 4 -प्रियतरा ; Gat

-परधना ; M45 -कृतसमा ( for पृथुतरा ) . F + -रंभयत्रैः ; It -रंभयित्वा ( for रम्भयत्नाः ) .

F6 J1 परार्थैः ; I परार्थान् – ● ) A2 क्षांतीवाक्षेप- ; B C D Est H क्षांत्यैवोपेक्ष्य ( Es ) ;

Eot.it क्षांत्यैवापेक्ष्य ; F + W3 . क्षांत्यैवक्षेप- ( F + m.v . " वानेक- ) ; J1 क्षांत्येवाक्षेप- ( for क्षान्त्यैवाक्षेप- ) .

W1 . 3. 4 -रुक्षाक्षर- ; J1 रूपाक्षर- ( for- रूक्षाक्षर - ) . Wom . ; M3 - 5 - परुष - ( for मुखर - ) . D F3

Y ( except Yic . 4 ) TGM दुर्जनान् ( for दुर्मुखान् ) . A0 - 2 दूषयंतः कियंतः ; W2- दूषयंतः

समंतात् ( for दुर्मुखान्दूषयन्तः ) . B धर्षयंतः ; CDFat.v . 1 J2.3_Y2 . 4. 5.7.8 ' T ' GM1-3

दुःखयंतः ; J1 दुर्जयंतः ; Yo दूरयंतः ; M1.5 M4.6 पीडयंत : ( for दूषयन्तः ) . - d 6 ) E3 F2 . 3 G2 चाश्चर्य ;

Hic स्वाश्चर्य ; W2t . 3t st [ 5 ] प्याश्चर्य ; त्वाश्चर्य ( for साश्चर्य ) . B2 Eo . st Wac X2 वर्याः ;

Fam.v. - भूताः ( for -चर्याः ) . ( E com . generally चर्य ( Eoc . 30 वर्य ) = सौंदर्य ) . X बहुमतो .

C It J1 . 3 ®Y7 T3 G1_M2 . 3 नाभ्यर्थनीयाः B त्रिभुवनभवने वंदनीया जयंति ; M18 सदसि

बहुमता : के ( Ms क ) स्थ न स्युर्नमस्या : ( for जगति बहु etc. ) .

BIS . 3379 ( 1434 ) Bhartr ed . Boil . 2.59 . Haeb . 41. lith ed . I. 68 , II . 70 .

Galan 71. Prasangabh . 11. Subhash . 308 ; SRB . p . 53. 277 ; SBH . 286 ; SRK .

p . 18.75 ( Śp . ) ; SSD . 2. f . 92b ; SSV . 430 .