मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णा
स्त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः पूरयन्तः ।
परगुणपरमाणूंन्पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ॥ ७८ ॥
मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णास्
त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः ।
परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ॥ १ ९ ॥
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