Kosambi

verse

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यद् यस्य नाभिरुचितं न तत्र तस्य स्पृहा मनोज्ञेऽपि ।

रमणीयेऽपि सुधांशौ न नाम कामः सरोजिन्याः ॥ ३० ९ ॥

footnote

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309 { 6 } Om in A C D I X Y , BVB2 , BORI 326 , Ujjain 6414 and NS3 .

4 ) F3 यद्यस्ति . B नातिरुचितं ; F3 W नास्ति रुचिरं ; FoJ नातिरुचिरं . b ) न तस्य

तन्त्र . F2 corrupt ; F3 स्पृहया ( for स्पृहा ) . W तत्रास्य स्पृहाम ( Wst न ) भोग्येपि

( W1.20.3C . 40 मनोज्ञेपि ) . - c ) F F4 अतिरुचिरेपि सुधांशौ . B 4 ) F5 W न मनःकामः

सरोजिन्या :; H नलिनी नानुरागमाधत्ते .

BIS . 5288 ( 2291 ) Bhartr . ed . Bohl . 1. 103 ; SIP . 5.39 ( Bh . ) .

310 { N } Found in B D , E3 ( N60 ( 59 ) , not collated ) ; IFs N52 ; and H [ Also

BORI 329 N 59 ( 54 ) ; Punjab 2101 ( N55 = 56 ) ; BU N55 ( 53 ) ; Jodhpur1 N59 ;

NS1 N55 ( 56 ) ; NS2 N55 ; NS3N59 ] - a ) B2 मदभिन्न गल्लकरटास् . - ० ) B Fs F5 हेम

( for स्वर्ण - ) . Fs विमूर्छिता ( for -विभूषि ) . 132 हेषंति ( for वल्गन्ति ) - ( ) ) B -निनर्दे :

( for पणवैः ) . B2 Fo सुप्तस्तु – 4 ) H -सिद्धि - ( for ऋद्धि- ) .