कान्तेत्युत्पललोचनेति विपुलश्रोणी भरेत्युन्नम
त्पीनोत्तुङ्गपयोधरेति सुमुखाम्भोजेति सुरिति ।
दृष्ट्वा माद्यति मोदतेऽभिरमते प्रस्तौति विद्वानपि
प्रत्यक्षाशुचिपुत्रिकां स्त्रियमहो मोहस्य दुश्चेष्टितम् ॥ २३१ ॥
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BIS . 1633 ( 635 ) Bhartr . ed . Bohl . 1.72 . Haob . 75. Prabodhacandrodaya 4 .
8 ; SRB . p . 250. 19 ; SSD . 4. f . 21b ; SMV . 26. 5 ; JSV . 131. 3 .