इमे तारुण्यश्रीनवपरिमलाः प्रौढसुरत
प्रतापप्रारम्भाः स्मरविजयदानप्रतिभुवः ।
चिरं चेतश्चौरा अभिनव विकारैकगुरवो
विलासव्यापाराः किमपि विजयन्ते मृगदृशाम् ॥ २१७ ॥
217 { Ś } Om . in W. – “ " ) C J2 तारुण्यस्त्री . A8 ID Eat J1 X Y1G4 - नवपरिमल - 3
Y7 - धवपरिमलाः – 6 ) 5 - प्रतान- ; M 1.5 प्रदोष - ( for प्रताप - ) . J1 G4 प्रारंभ . F3 स्मरवि
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किमपि मृग ; Y क्षणमपि ज ( for किमपि विज ) . B1G1 Ms मृगदृशः .
BIS . 1123 ( 3752 ) Bhartr . lith . od . II . 1. 85.in Schiefner and Weber p . 23 ;
SR.B. p . 255. 30 ; SLP 5.22 ( Bh . ) .