उन्मत्तप्रेमसंरम्भादारम्भन्ते यदङ्गनाः ।
तत्र प्रत्यूहमाघातुं ब्रह्मापि खलु कातरः ॥ ११५ ॥
115 In Y2 , this stanza lost on missing folio . a ) C उन्मत्तः ; F + Y1 4 5 G2.3.5
उद्गाढ- ; Y : उन्मीलत् ; M 1 , 4 उन्मत्ता : ( for उन्मत्त - ) . Yr - प्रिय- ( for -प्रेम- ) , Ila -सारंभाद् ;
Y : -संबंधाव् ; Y : -संभोगान् ; G1 M2 -सरसम् ; G + M . - संचारा ; M1 * रसम् ; M3 -संसर्गाद्
( for -संरम्भाद् ) . Ao . 3 E2 F Y1 4 – 5 T G ( except G3t ) M ( except M2 ) आरभंते
[ the grammatically correct reading ] ; Es आरंभेते ; Y3 [ आ ] रंभते ; Y7 आरंभंति ( for
आरम्भन्ते ) . X यदांगनाः . Y : भजते यदलीगणः - ) c ) Yit ( 4 A and printed text ) तं च
( for तंत्र ) . Fs प्राप्तमहाधातुं ; JG1 प्रत्यूहमादातुं - 4 ) E3 दैवोपि ( for ब्रह्मापि ) .
BIS . 1266 ( 476 ) Bhartr ed Bohl . 1.60 Haeb 63. lith ed . II . 55 ; SM . 1405 ;
SSV . 1390 ; SLP . 4.96 ( Bh . ) .