Gopinath1914

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Gopinath1896

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Kosambi

verse

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मालती शिरसि जृम्भणोन्मुखी चन्दनं वपुषि कुङ्कुमाविलम् ।

वक्षसि प्रियतमा मदालसा स्वर्ग एष परिशिष्ट आगतः ॥ ११६ ॥

footnote

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116 Stanzas 116-118 are omitted in E3 , probably due to a missing fol . in

exemplar ( but com . of 118 found ) . -- 4 ) D जृंभितोन्मुखी ; I श्रंभिणोन्मुखी ; Y + -6 . 4 T

Gs जृंभणं मुखे ; G + M2 जृंभणोन्मुखा ( M2 -ख ) ; Mo भृंगिणोन्मुखी . - ० ) F1 कुंकुमार्पित

( t.v. ' र्चितं ) ; F2 ' माचितं ; W2.3 ° मान्वितं ( W com . कुंकुमेन युक्तं ) ; G1.8t.v.4 M ° मारुणं

( for ' माविलम् ) . ● ) X 1 वक्ष्यसि ( for वक्षसि ) . B2 Fs W मनोहरा ; C Eo . 4. 5 F2

मदालसाः ; G1 मदालस ; M4 . 6 रसालसा ( for मदा ) . — a 4 ) F2 . 4 Y7 G1.24 M1 - 3 एव ( for

एष ) . B2 परिपूर्णम् ; D परिसृष्ट ; F F2 : मृष्ट ; X Y1 तुष्ट ; Y० परसिद्धिर् ( for परिशिष्ट ) . Fs F

( t.v. as in text ) J Y 4-8 T G आगम : ( for आगतः ) . C स्वर्ग एष परिखिद्यते कथं .

BIS . 4842 ( 2192 ) Bhartr . ed . Bohl . 1. 24. Haeb . 26 lith ed . II . 57 .

Prasañgābh . 14 ; SBH . 2228 ; SIP . 3.29 .